देह-अभिमान त्याग
देह-अभिमान त्याग
तजो देह का मान, विषयों का मोह,करो कर्म ऐसे, न फल की हो चाह।
अजर अमर आत्मा, मानो यह सोह,
द्वंद्वों में न उलझो, तटस्थता राह।
मन को निरपेक्ष, दृष्टा बनाओ तुम,
देखो निर्लिप्त निज स्वरूप शांत चित्त।
मिलेगा परमानंद, मिटेगा हर गम,
पहले मन शुद्ध करो, बनो तत्ववित्त।
धूल झाड़ो मन की, करो निर्मल नीर,
सत्य का प्रकाश तब हृदय में जागे।
त्याग से ही पाओगे जीवन की पीर,
तटस्थ भाव से, सब बंधन त्यागे।
अमरत्व की अनुभूति, यही है सार,
आत्मज्ञान से, जीवन का हो उद्धार।
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