मानव बनो, लिंग भेद छोड़ो : कविता
मानव बनो, लिंग भेद छोड़ो : कविता
जग की दौड़ है, अंधी चाल,
भोगवाद का है ये जाल।
नारी खोती अपना रूप,
मर्द बन रहे हैं अनूप,
जीवन बस बोझ, है बेहाल।
एक नई कथा लिखो,
समता की राह चलो,
भेद मिटाओ लिंग का,
युगल तत्व ये जीवन का,
मूल्य बूझो, समत्व लाओ।
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