स्थितप्रज्ञ बनो, भव सागर तर जाओ: श्री भगवद गीता का सन्देश दोहो में


स्थितप्रज्ञ बनो, भव सागर तर जाओ: श्री भगवद गीता का सन्देश दोहो में 

 समबुद्धि योग साधो, मन को शांत बनाओ।
राग द्वेष से दूर रहो, समता, हृदय बसाओ।

द्वंद्व छोड़ो, ये मानो,  जग में तो छल  होय।
प्रतिक्रिया मत करो, मनोभाव निर्मल होय

न करो कोई प्रतिक्रिया, हर पल सहज रहो।
समभाव है स्वयंभू, बस उसमें ही बहो।

समभाव है आत्मा, स्वयंभू यह जानो।
समता से भर जीवन, परम गति पहचानो।

स्थितप्रज्ञ जो  हो  जाए, वो परम धाम पाए।
सदा समभाव से ही, जीवन सफल बनाए।

समभाव हृदय में, सदा जो रखता है।
परम गति को पाये, भव से तरता है।



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