भीतर की क्रांति पर दोहे
अंदर की यह क्रांति है, मन का नया सवेरा।
बदलेगी जब सोच तेरी, बदलेगा जग तेरा।
खुद से खुद को बदलना है, ये निज का प्रवाह।
ये भीतर की है धारा, ये अपनी ही राह।
यह अंतर की अनुभूति है, गहरा जिसका ज्ञान।
स्वयं में ही प्रकट होता, यह अनमोल वरदान।
ये अंतर की गूँज है, ये दिल का एहसास।
ये तेरी ही शक्ति है, तेरा ही विश्वास।
ना बाहरी कोई सहारा, ना सत्ता का जोर।
ये अंतर का ही सूरज है, जो चमके हर ओर।
भीतर है यह क्रांति न्यारी, वृत्ति का है बदलाव।
अपने स्वभाव को बदलना, यही सच्चा ठहराव।
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