क्षुधा देवी संस्कृत मंत्र और आचरण के दोहे
संस्कृत मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु क्षुधा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
दोहे
वेदों में है लिखा ये सत्य, क्षुधा नहीं बस भूख है।
ये तो है इक दिव्य शक्ति, जीवन का ये स्वरूप है।
जब जागे ये भीतर शक्ति, तन में ऊर्जा भरती है।
ये अग्नि है जो चलाती, हर जीवन को रचती है।
इसे मानो तुम परम पावन, श्रद्धा से इसका आदर हो।
ये देह को पाले, मन को साधे, आत्मज्ञान का द्वार हो।
ये पथ है अपने आप को पाने का, भीतर की ये पुकार है।
क्षुधा ही देवी, क्षुधा ही ज्ञान, मोक्ष का ये आधार है।
जब भूख लगे तभी, भोजन को ग्रहण करो।
धीरे-धीरे खाकर, रस से उसे भरो।
खाने का लो आनंद, मन शांत रखो।
क्षुधा-भाव की साधना, तुम ही चखो।
भोजक, भोजन, क्षुधा-भाव, सब एक समान।
एकत्व की साधना से, मिले सच्चा ज्ञान।
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