अपनी किस्मत, अपने हाथ : कविता


 जग बाहर का अपने वश में कहाँ,
पूरी हर कामना ना होती यहाँ।
बदल अपनी राह, निज मन की चाह,
फिर पाओगे तुम अपना पावन जहाँ।

अपनी सोच है, अपना इरादा,
अपनी नीयत से हर पल का वादा।
दृष्टिकोण, नीयत, चरित्र का साथ,
ये बदलना तो हैअपने हाथ ।

मन, बुद्धि, चित्त पे करें काम,
यही है खुद का परम धाम।
अच्छाई की राह को अपनाकर,
स्वयं को बदले, बेहतर बनाकर।

मनोस्थिति बदलेगी जब तुम्हारी,
खुलेगी भीतर खुशियों की क्यारी।
बाहर नहीं, भीतर है खजाना,
खुद को बदलो, यही है पाना ।


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