नव रात्रि पर पंचपदी कविताएं


 नव रात्रि पर पंचपदी कविताएं 

नवरात्रि में साधना का दीप जला,
प्रगति, सदाचार का मार्ग फला।
एकाग्र मन जब ठहरे,
भीतर शक्ति उभरे,
अज्ञान का तिमिर सब दूर टला।

नवरात्रि का है ये दौर सुहाना,
प्रगति पथ पर है अब जाना।
सदाचार हो साथ,
एकाग्र मन साथ,
रे आंतरिक शक्ति को है पाना।

दृढ़निश्चय ले हम चलें आगे,
मंगल विचार मन में जागे।
श्रम करें, सेवा दें,
जीवन को संवारें,
अज्ञानता से मुक्ति पागे।

आत्म-ज्ञान की शक्ति जागेगी,
नव निर्माण की ऊर्जा जागेगी।
नया हो सवेरा,
मन हो उजेरा,
जीवन की राह अब सजेगी।

नवरात्रि में प्रगति का लिया भार,
दृढ़निश्चय, सदाचार से भरा संसार।
एकाग्रता से जगी आंतरिक शक्ति,
अज्ञान मिटा, आत्म-ज्ञान की भक्ति।
श्रम, सेवा से मंगल विचार का प्रचार।

Comments

Popular posts from this blog

एकं ब्रह्म द्वितीय नास्ति नेह ना नास्ति किंचन: ब्रह्म ज्ञान का मूल मंत्र एवं सूक्ष्म बोल आलाप

Preliminary fatal Air India plane crash probe report: News brief and limerick

Filipino tanaga micro-poems are good for cultural and spiritual education