मानसिकता, भावना एवं प्रकृति प्रतिकार : दोहे

 

मानसिकता, भावना एवं प्रकृति प्रतिकार : दोहे 
 
जैसी मन की सोच हो, वैसा ही फल पाए।
भावनाओं का ही असर, जीवन में दिख जाए।।
 
जैसी सोच, वैसा जीवन का रंग होगा,
जैसी भावना, वैसा ही जग संग होगा।
 
प्रकृति तो सौम्य है, हितकारी, प्यारी,
प्रेम से देती है जीवन की फुलवारी।
 
पर जब उसका दोहन करते हम भारी,
जड़ मानसिकता लाती है विपदा सारी।
 
जड़ मन से जब काम हो, प्रकृति चुप हो जाए।
फिर अचानक ही वो, मूक प्रतिकार दिखाए।।
 
जब हम प्रकृति का करें, अति-दोहन हर बार।
मौसम का फिर चक्र भी, बदले अपना सार।।
 
भूचाल, सूखा, बाढ़ हो, तूफाँ, अति-वृष्टि।
भू-स्खलन भी आते हैं, होती जग में क्षति।।
 
ये सब अशुभ भावना के ही फल हैं,
अतिक्रमण, लालच के कड़वे पल हैं।
 
ये सब अपने कर्म का, दोहन का परिणाम।
अशुभ भावना का ही, ये दुखद है अंजाम।।
 
प्रकृति तो हितकारी है, सौम्य है उसका रूप।
प्रेम भाव से हम जिएँ, समता भरें अनूप।।
 
प्रेम-भाव से जियो, समता अपनाओ,
प्रकृति का सम्मान कर, जीवन महकाओ।
 

Comments

Popular posts from this blog

Preliminary fatal Air India plane crash probe report: News brief and limerick

Yoga Day 2025 Theme: Yoga for One Earth, One Health

Intersection of the Bhagavad Gita and Sports Psychology through Gita Acrostic