रिक्त मन, दिव्यता का आवास : दोहे


 रिक्त मन, दिव्यता का आवास : दोहे 

मन को अपने रिक्त कर, दिव्यता का हो वास।
खाली मन में ही सजे, प्रभु मिलन का आभास।।

मोह-माया के जाल से, मन को करो तुम रिक्त।
शांति तभी मन में बसे, हो जब तुम निर्लिप्त।।

द्वन्द्वों से जब मुक्त हो, मन में न रहे विकार।
कामना, क्रोध, मद तजो, लोभ, दम्भ को मार।।

विषय-वासना त्याग दो, मन को करो पवित्र।
रिक्तता में ही पाओगे, सुख का सच्चा चित्र।।

रिक्त मन ही है पावन, निर्मल यह सुखधाम।
इसको पाना सुकृत है, यही सच्चा काम।।

मोह और माया का बोझ हटाओ।
मन के द्वंद्वों को दूर भगाओ।

रिक्त मन ही पावन, सुकृत की डोर।
इसी में प्रगट हो दिव्यता का भोर।

Comments

Popular posts from this blog

एकं ब्रह्म द्वितीय नास्ति नेह ना नास्ति किंचन: ब्रह्म ज्ञान का मूल मंत्र एवं सूक्ष्म बोल आलाप

Preliminary fatal Air India plane crash probe report: News brief and limerick

ADVENT OF QUANTUM SCIENCE AND TECHNOLOGY: A POEM