कर्मयोग के दोहे
जीवन का जानो लक्ष्य , राह में ज्ञान बढ़ाओ।
त्याग में है सच्चा सुख, बस कर्म करते जाओ lI
त्याग देह अभिमान, करो कर्म निष्काम।
फल
की चिंता त्याग के, ले लो सुख अविराम।I
कर्म करो बस कर्म, फल तो है विधि हाथ।
त्याग दो अभिमान, रे तभी बने गी बात ।।
करो कर्म निष्काम, यही है जीवन धर्म ।
फल
की चिंता मत करो, रे करते जाओ
श्रम।I
सच्ची श्रद्धा से करो, अपने सब काम ।
ईश कृपा बनी रहे गी , ऐसा लो जान ।I
कर्म से मिलता है, मानव मन को चैन ।
कर्म
करो बिन चाह, श्रम करो दिन-रैन ।I
परमसिद्ध है जो ज्ञानी, उनकी बात मान।
निष्काम कर्म को ही जीवन ध्येय रे जान ।I
करो कर्म निष्काम, फल की चिंता त्याग दे।
हो
के द्वंद्व मुक्त जी
. चंचल
मन विराग दे।I
कर्म
ही प्रधान है, फल की इच्छा छोड़ दे I
कर के
सबका सम्मान, मन
को भीतर मोड़ ले II
जन्म से मृत्यु तक, कर्म ही आधार है।
कर्म योग में लीन रहो, यही सत्य विचार है।i
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