भीतरी आनन्द; बोल-आलाप अकविता

~ललित किशोर


इच्च्छाएं  उपजें -

संसार-पोषित मन-में, पूर्व-ग्रहित मन-में

इच्च्छाएं जगाएं -

द्वन्द्व भावनाएं  -

सुख-दुःख-की, राग-द्वेष-की, ईर्ष्या-परिग्रह-की  l

~*~

संसार  -  बाह्य-जगत, भौतिक-जगत

द्वन्द्व-जगाए, क्रोध-जगाए, क्लेश-जगाए

बाह्य-जगत-से  -

नाता-तोडो, मोह-छोडो

भौतिक सुख-भोग

क्षणिक-हैं, भन्गुर-हैं, मिथ्या-हैं  l

~*~

भीतर-जाओ,

विवेक-जगाओ, अन्त:करण-जगाओ

समभावी-बनो, स्थितप्रज्ञ-बनो, साक्षी-बनो -

परमानन्द पाओ ll

 

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