विवेक और भाव जागरण ही पुण्य कर्म है : अलाप दोहे
विवेक और भाव जागरण ही पुण्य
कर्म है : अलाप दोहे
संसार है ये, एक माया
जाल,
इच्छा
मन
में,
करे
धमाल।
मन में उठे ये चाह की लहर,
मन तो
बंधा,
संसार
की
डगर।
प्रकृति,
माया,
खींचें
डोर,
मन चंचल,
भागे
हर
ओर।
चंचल
मन
से
कर्म
हैं
होते,
कभी
ये
पाप,
कभी
दुख
बोते।।
मन को
बांधो,
बुद्धि
जगाओ,
विवेक
जगाओ,
भाव
में
लाओ।
सद्भाव
से
फिर
करो
काम,
यही
पुण्य
है,
पावन
नाम।
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