जीवन बोध: पंचपदी सूक्ष्म कविताएँ
जीवन बोध: पंचपदी सूक्ष्म कविताएँ
धर्म न बाज़ार की कोई दुकान,
न थोपी रस्मों का बेजान विधान।
आत्मा को जानो,
सब में पहचानो,
यही सत्य-पथ, जीवन का गान।
***
जीवन थोपा धर्म नहीं, न नियमों का ज़ोर।
आत्मज्ञान ही ब्रह्म का मर्म, यही सच्ची भोर।
स्वयं को पढ़ो,
अंदर ही गढ़ो,
आत्मा से जुड़ो, चल लो अंतर्मन की ओर।
***
यह जीवन है दिव्य, ब्रह्मांड का वर।
न संस्था का बंधन, न गुरु का है डर।
आत्म-ज्ञान की राह,
ब्रह्म से मिलन की चाह।
भोगवाद को त्यागो, बनो तुम अमर।
Comments
Post a Comment