शस्त्र, शास्त्र और सत्ता, घातक घुट्टी : दोहे
शस्त्र, शास्त्र और सत्ता, घातक घुट्टी : दोहे
शस्त्र नहीं सच्ची शक्ति देते,
लेते जान, उन्माद हैं भरते।
शास्त्रों की बातें, भारी वचन,
मन को बांधें, हर पल, हर क्षण।
शब्दों के जाल में, फंसे विचार,
खो जाए अपनी, सोच का सार।
पांडित्य का अभिमान जगाते,
क्रूर सत्ता का मार्ग दिखाते।
अंधभक्त बना, शस्त्र उठवाते,
धर्म के नाम पर लड़वाते।
दोनों ही हैं गहरे बंधन,
आग्रह बस, न मुक्ति के स्पंदन।
जीवन का सत्य इनसे है न्यारा,
भीतर की खोज, अनुभव प्यारा।
यह तो है मन की गहरी क्रांति,
पाओ स्वयं की पावन शांति।
बंधन तोड़ो, सत्य तुम खोजो,
अपने जीवन का अर्थ सँजो।
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