गीता ज्ञान गान
विभिन्न गीता आरतीयों से प्रेरित : गीता ज्ञान वन्दन गान
गीता ज्ञान मोह माया का नाश करे
दिव्य ज्ञान का मन में प्रकाश करे
देह जन्मे औ मरे, आत्मा है अविनाशी
देह को दुख व्यापे, आत्मा है सुखराशी
विषय औ विकारों का मन से परित्याग करो
आत्मा औ ब्रह्म को जानो, उनसे अनुराग करो
सबमें ब्रह्म को जानो, सबसे प्रीति करो
वैर भाव दर्पवश होकर ना अनरीति करो
मनको वश में करके इच्छा त्याग करो
आधिभौतिक हो के प्रभु से अनुराग करो
निष्काम कर्म नित्य कर अपना उद्धार करो
फल कामना त्याग के सद् व्यवहार करो
गीतोपदेश जो मन और कर्म में लावे
निश्चित ही वो भवसागर से तर जावे
सुख करनी , दुख हरनी है भगवदगीता
श्री मुख की दिव्य झरणी है भगवदगीता
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टिप्पणी : विभिन्न गीता आरतीयों से प्रेरित
आरती / वन्दना छन्द शैली में लिखी जाती है
छंद मात्रा की गणना के अनुसार बना पद्यबंध है।
वर्ण के उच्चारण में जो समय लगता है उसे मात्रा कहते हैं। छंद में मात्राओं की गिनती ज़रूरी है ।मात्राएँ दो प्रकार की होती हैं:
लघु मात्राएँ: गिनती: 1 मात्रा; चिन्ह: । या 1; उच्चारण: ह्रस्व
दीर्घ मात्राएँ: गिनती: 2 मात्राएँ; चिन्ह: S या 2; उच्चारण: गुरु / दीर्घ
संक्षेप में मात्रा गणना के 2 सूत्र: (1) मात्रा केवल स्वर की गिनी जाती है; (2) बिना स्वर के कोई उच्चारण नहीं होता अतः जो भी अक्षर देखें उसमेँ लगे हुए स्वर पर दृष्टि डालें।
स्वर यदि लघु है तो मात्रा लघु होगी अर्थात् 1 और यदि दीर्घ है तो 2।
- अक्षर = व्यंजन + स्वर
- स्वर = अ – अः
- लघु स्वर = एक मात्रा = अ, इ, उ + ऋ+ चन्द्र बिन्दु वाले स्वर
- दीर्घ स्वर = दो मात्राएँ = आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अः
- व्यंजन = क – ज्ञ
- लघु व्यंजन = एक मात्रा: क [क + अ], कि [क + इ]
थोड़े अभ्यास के बाद के उच्चारण मात्र से मात्राओं का अनुमान लगाया जा सकता है।
- जब शब्द रचना, वर्णों की संख्या, अक्षरों की संख्या और क्रम, मात्रा की गणना आदि के अनुसार नियोजित हो, उसे छंद कहते हैं।
- अक्षरों की संख्या, मात्रा, गणना, गति को क्रमबद्ध तरीके से लिखना छंद (Chhand kya hai in hindi) कहलाती हैं। छंद शब्द ‘चद’ धातु से बना है, जिसका अर्थ होता है – खुश करना। जैसे – चौपाई, दोहा
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