आत्मज्ञान पर सूक्ष्म कविताएं : दुर्लभ मानव जीवन ध्येय, साधना करो
सूक्ष्म कविताएं
निराकार
परमात्मा-ही सत्य-हैं
ओम-ध्वनि उन-का स्मरण-है l
***
परमात्मा
परमपिता-हैं, शाश्वत-हैं
मानव-मात्र उन्हीं-की संतान-है l
***
मानव-ने
क्षणभंगुर पर-दुर्लभ
संभावना-युक्त जीवन पाया-है l
***
मोह-माया-में
भौतिकता-में मत-पडो
भीतरी शाश्वत-अंश-को पहचानो-जानो l
***
आत्मज्ञान-की
साधना करो-तुम
अक्षय-के अनामय-के दर्शन-पाओ l
Comments
Post a Comment